कोई तो वजह दे मुस्कुराने की..
कोई तो बताए...राज खुशी के..
हम तक कोई आवाज..
पहुंचती क्यों नही..
गमों के साये..क्यों गहरां रहे है..
हम तक कोई सदा
पहुंचती क्यों नही..
विरान गलियोंसे
गुजरतें रहतें
कोई तो आहट आती क्यों नही..
जख्मोंसे भरे हम..
कुचलकें होश हमारें
कोई सवारी निकलती क्यों नही..
सुना पडा है शहर सारा..
लाशोंसे हमारे...
कोई लिपटतां क्यों नही...
आह सुननेभर को...
रुहों के हमारी...
कोई यहां भटकता क्यों नही...
?
२४.७.२०१२
बहुत अच्छी रचना है ।
ReplyDeleteअमित कुमारजी
ReplyDeleteधन्यवाद...
छाया थोरात