लहू का लाल..
और...दर्द का भी..
धोखा..वह भी तो लाल है..
सिंदूर भी लाल
और लाली भी लाल..
मेहंदी लाल और
अलिता भी लाल..
क्यों कर सुहागनें
लाल के लिए सजती है..
लाल के लिए तरसती है..
नही मिलें तो लाल के लिए
मरती..मारती भी है..
सुहागने..
अपनी ही कोख उजाडती
ये सुहागने..
लाल पाकर धन्य सी
हो जाती है..
दिमाग से लाल रंग छुटता नही..
जब के है वह हरी..
हरी भरी...
प्रकृती जैसी...
निर्माण की अनोखी
शक्ती से भरी..
जीवन से ओतप्रोत..
हरी शाखाओंसे भरपूर..
जीवनदायिनी...
अमृतधारिणी...
अनोखी.......स्त्री......
?
२४.७.२०१२
और...दर्द का भी..
धोखा..वह भी तो लाल है..
सिंदूर भी लाल
और लाली भी लाल..
मेहंदी लाल और
अलिता भी लाल..
क्यों कर सुहागनें
लाल के लिए सजती है..
लाल के लिए तरसती है..
नही मिलें तो लाल के लिए
मरती..मारती भी है..
सुहागने..
अपनी ही कोख उजाडती
ये सुहागने..
लाल पाकर धन्य सी
हो जाती है..
दिमाग से लाल रंग छुटता नही..
जब के है वह हरी..
हरी भरी...
प्रकृती जैसी...
निर्माण की अनोखी
शक्ती से भरी..
जीवन से ओतप्रोत..
हरी शाखाओंसे भरपूर..
जीवनदायिनी...
अमृतधारिणी...
अनोखी.......स्त्री......
?
२४.७.२०१२
बहुत सुंदर रचना है..
ReplyDeleteसिंदूर भी लाल
और लाली भी लाल..
मेहंदी लाल और
अलिता भी लाल..
क्यों कर सुहागनें
लाल के लिए सजती है..
लाल के लिए तरसती है..
नही मिलें तो लाल के लिए
मरती..मारती भी है..
सुहागने..
अपनी ही कोख उजाडती
ये सुहागने..
लाल पाकर धन्य सी
हो जाती है..
दिमाग से लाल रंग छुटता नही..
ये लाल रंग कैसे छुट सकता है यही तो है.जो . प्रकृति से हमे उपहार स्वरूप मिला है..
लाल रंग में रसी बसी दुनिया..
निशित पाठक..
Deleteधन्यवाद...
छाया थोरात