Monday 30 July 2012

आह....


कोई तो वजह दे मुस्कुराने की..
कोई तो बताए...राज खुशी के..
हम तक कोई आवाज..
पहुंचती क्यों नही..
गमों के साये..क्यों गहरां रहे है..
हम तक कोई सदा
पहुंचती क्यों नही..
विरान गलियोंसे
गुजरतें रहतें
कोई तो आहट आती क्यों नही..
जख्मोंसे भरे हम..
कुचलकें होश हमारें
कोई सवारी निकलती क्यों नही..
सुना पडा है शहर सारा..
लाशोंसे हमारे...
कोई लिपटतां क्यों नही...
आह सुननेभर को...
रुहों के हमारी...
कोई यहां भटकता क्यों नही...

?
२४..२०१२

गुलशन ए बहार


रात के अंधेरे में...
 जो कलियां भर ली थी हाथों में
 लगा था बन जायेगी...फ़ूल...
 रातें गुजर गयी..
 अब तो ना कलियां है..ना फ़ूल..
 हाथों की..रेखा को कुरेदके...
 कौनसी कलियां..कौनसे फ़ूल
 चुनू मै अब..
 रेत की ठेर मैं से...
 कहां ढुंढू मै अपनी..उस..
 बगिया को..जहां कभी...
 गुलशन ए बहार थी....

 ?
 २२.७.२०१२

लौट जा ए राहगुजर...


लौट जा ए राहगुजर..
ना दे पायेगा मेरा साथ तू..
नही चल पायेगा दो कदम..
अब मेरे साथ तु..
अरमान मेरे तप्त है..
तु मोम सा पिघलता है
जबकि चाहु मैं तेरा साथ
अपने आप में लिप्त है तू
लौट जा ए राहगुजर..
ना दे पायेगा मेरा साथ तू..
छोडके रस्मो-रिवाजों को..
चल पडे है मंजिल हम
तु मत सजा खुद्को...
मत बना तमाशा अपना तू
लौट जा ए राहगुजर..
ना दे पायेगा मेरा साथ तू..
हौसला अफ़जाई नही
करनी तेरी अब मुझे..
मै जानती हुं अंजाम...
बस अब सलामत रह जा तू
लौट जा ए राहगुजर..
ना दे पायेगा मेरा साथ तु..
गर आयेगी बाढ गमों की
नही देंगे आवाज तुम्हे..
सुनना नही मेरी अनकही..
चले जा भिडका रस्ता तू
लौट जा ए राहगुजर..
ना दे पायेगा मेरा साथ तू...
समझ लेना पराया था..
अंधियारा बादल छायाथा..
सपना था जागती आंखो का
तोड के अब बस निकल जा तू
लौट जा ए राहगुजर..
ना दे पायेगा मेरा साथ तु..



?.......
१०//२०१२

माटी की तकदीर


माटी की तकदीर लायी हुं लिखाके..
 कभी आये बरखा तो...निखर जाती हुं...
 सुखा पडे तो...कांटा बन जाती हुं...
 ये क्या किस्मत पायी है...
 सदा निर्भर क्यों है ये...
 क्यों नही...उडती ये..हवाओंमें..
 क्यों नही..छाजाती घटा बनके..
 सूरज की किरणें बन कर ...
 क्यों नही घुम आती यें..
 फ़ुलों की महक बन..
 क्यो नही..महकाती यें..
 क्यो है इसे दर्द इतना
 अपनी ही छंदो पर..
 क्यों है यह बेबस...महकने को...
 बारिश के चंद बुंदो पर..

 ?
 २२.७.२०१२

मन थेंब पानावर


पानावर मन माझे..
मन थेंब पानावर
पानातल्या मनावर
हिरवाईची पाखर..

देई वारा ही हिंदोळे
मन होई सरसर
पानातल्या पानात
मन करी हुरहुर..

दूरदूर नको जाऊ
मना मना उगी कर
जाशी कसा इथेतिथे
त्याला थोडंसं आवर..

रहा पानाचं होऊन
होऊ दे पानाचा आसर..
रंग घेऊन पानाचा
मना पानाला सावर..

?
३०..२०१२

बात कुछ ऐसी है...


बात कुछ ऐसी है...
बातों बातों में कहदी कितनी सारी बातें..
पर फ़िर भी नही समझ आयी...
हमारी बात...
हम बातों सेही जी बहलातें है..
बातें ही बन जाती है जियां..
बात बात पर बातें हो...
यही बात चाहते है पिया..
बातोंमे कोई जोर नही..
तुम समझों बात हमारी..
बातं बातं समझकर भी..
बातें भूल जाना हमारी...
हम तो बतियातें जाते है..
तुम जबसें हो संग
चढा हुआ है बातोंपर जबतब..
बस तुम्हारा ही रंग...

?
२३.७.२०१२

बूंद भर खुशब...


बस बूंद भर हुं मै...
खाली एक प्याले में...
न गिरती हूं...ना बहती हूं..
बस देखें जाती हूं
कब सुख जाऊं मैं...
कब मिट जाऊं मैं...
कभी तो तुम..
छूकर...
उंडेल कर हथेलिओंपर...
सांसो में भरोगे...
मेरी खुशबु को..
या पता नही..
सुख जाये अरमान मेरे....
मेरे सुखने से पहले....

?
२२..२०१२

चाहते तो हम भी है..


चाहते तो हम भी है..
के खुशियां हमे भी रास आये..
चाहते तो हम भी है..
मिले हमें भी मोहब्बतों के सायें
चाहते तो हम भी है..
दामन भरा हो फ़ुलोंसे हमारा..
चाहते तो हम भी है..
हथेलियों पर नाम तुम्हारा..
चाहते तो हम भी है..
तारों भरा आसमान..
चाहते तो हम भी है..
हमारे चंदा की चीतवन..
चाहते तो हम भी है..
बरसे हमारा बादल..
चाहते तो हम भी है..
रंगीनीयोंसे भीगे आंचल..
चाहते तो हम भी है..
इश्क की इन्तेहा हो जायें..
चाहते तो हम भी है..
तेरा नाम लेकर हम खो जाये..

?
२७..२०१२


कितने फ़ासले तय करके..


कितने फ़ासले तय करके..
 कितनीही सांसों को पार करके..
 जब हम तुम्हांरे पास पहुंचे..
 तुम कहते हो..हम हम नही..
 सच नही पर भरम भी नही...
 क्या हो तुम..देवता..
 पर वे तो मंदिरों में रहते है..
 तुम तो बसे हो दिल में
 मेरे लिए बस यही..
 सच है...यही है सच..
 भरम बिल्कुल भी नही...
 तुम भी मत रहना...
 भरम में...के...
 तुम भरम नही.. सच नही..
 वो तो समझता है...दिल मेरा..
 जो है मेरा सच है...
 कोई भरम नही....

 ?
 २२.७.२०१२

?

?
खरंच एक प्रश्नचिन्ह आहे माझ्यासमोर..
हे सर्व मी लिहिलयं..
मला यातल एक अक्षरही आठवत नाही..
तुम्ही जसं वाचता तसचं मी ही ते वाचत जाते..
काही आवडतं.... काही नाही आवडतं...
काही चुकीचं वाटतं..काही समर्थनीय...
पण..जे काही जेंव्हा कधी लिहिलयं
मनात जसं आलयं तस लिहित गेली..
हे शब्द माझे झालेत ह्यांच मात्र अप्रुप वाटतं..
त्यातली गोडी..ते क्षण... ते वाचतांना...
मीही पुन्हा पुन्हा अनुभवते...
हा माझ्यासाठी..स्वत:चा ठेवा...
पहा तुम्हांला किती भावतो...
किती पटतो...
आवडल्यास खरखरं सांगा...
आणि नाही आवडल्यावर नक्की सांगा...

करता येत असेल तर कर..


करता येत असेल तर कर..
तुझ्या आयुष्यातून दूर..
करुन टाक एकदाचे
हद्दपार तुझ्या ह्रद्यातून..
कशाला बाळगतोस ओझं
माझ्या आठवणींचे..
त्याही टाक पुसून..
भग्नावशेष दे भिरकावून..
माझ्या अस्तित्वाचे..
त्या एक एक खुणांचे
इंद्रधनुषी रंग संपवून टाक..
स्वच्छ करून टाक ..
आठवणींचे काने-कोपरे..
एवढे करूनही जर
पुन्हा आठवत राहिले तर..
तर मात्र परत ये..
तर मात्र परत ये..
मी तिथेच असेन जिथे ..
जिथे तु सोडून गेलास..
मला..मला एकटीला..

?
२४..२०१२


कच्ची डोर है...संभाले रखना


कच्ची डोर है...संभाले रखना
सयाने हो तुम...खयाल रखना...
मां की दुआ साथ रहेगी सदा...
कदम जमिन पर गडाये रखना...

साथ लेते जा..आंधी तुफ़ान
हवा का रुख समझायेंगे तुझे..
मस्ती लुटाना लहरोंपर..पर
नजर जमिन पर गडाएं रखना..

ममता नही रोकेगी तुझे..
आज हिम्मत का साथ देने
किस्मत की सुई दिखाए रास्तां
पर आज जमिन से जुडे रहना

सफ़लता या असफ़लता..
नही देखना मेरे बेटें
बनजा मगर एक इन्सां अच्छा..
और कर्ज इस जमीं का चुकाना..

?
१०.७.२०१२


तुझ्या माझ्यात एकच आहे.


नीरव शांतता
दुधाळ चांदने
सोबतीचा चंद्र
तुझ्या माझ्या एकच आहे
रात्रही तीच
तोच विरह
तोच कल्लोळ
तुझ्या माझ्यात एकच आहे.
तीच भावना
तीच वेदना
तीच संवेदना
तुझ्या माझ्यात एकच आहे.
अद्वीतीय......
तुझ्यात मी अन
माझ्यात तु एकच आहे.


?
..२०१२

पनाह मांग बैठे..


संग तुम्हारे राह चलते चलते..
जाने क्या..क्या मांग बैठे...
मुस्कुराहट तो थी हमारे पास..
तुम्हारे लबोंसे हमारा नाम मांग बैठे..
ललक भी तो थी आंखोंमे हमारे
तुम्हारी नजर से हमारा सुरूर मांग बैठे..
सुकुन ए दिल था जबकें
तुम्हारी शानोंसे रुमानियत मांग बैठे..
महकता दामन है हमारा फ़िर भी
तुम्हारी सांसो से हमारा रिश्ता मांग बैठे..
नींद ने किया था मदहोश तब..
तुम्हारी आगोश में पनाह मांग बैठे..

?
१७..२०१२