छोटीसी.. पगलीसी..
आंस की लकीर..
पार करनी है..
पहुंचना है..तुम तक..
जहां तुम और मैं..
हम... बसायेंगे...
उस जहां को..
जहां तुम..तुम ना रहोगे..
मैं..मैं न रहुंगी..
तुम और मै हम हो जायेंगे..
बस खुशियां चमकेगी..
चहकेगी..झुमेंगी..गायेगी..
ललकेगी..
लहलहा उठेगी..जीवन में बहार..
आंस की उस लकिर को..
करनी है पार...
?
२५.७.२०१२
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